पापा
पापा, क्या लिखुँ मैं आपके बारे में,
जिन हाथों ने इन पैरों को चलना सिखाया,
जिनकी छांव में खुद को बढ़ता हुआ पाया,
जिन्हे देख देख जिंदगी का मायना समझ में आया।
खुद की खुशियों को ताक पे रख,
हमारे लिए वो जीते मरते है।
शायद हमारी एक ख़ुशी की झलक देख,
वो अपने सब दुख भूल जाते है।
वो इस भाग दौड़ की नौकरी में,
हमें वक़्त नहीं दे पाते है।
शायद वो भी कंही कुछ पलों को चुराकर,
हमारे साथ जिंदगी जीना चाहते है।
फिर क्यों माँ के प्यार के आगे,
उनका प्यार फीका पड़ जाता है।
शायद उनका प्यार जताने का तरीका है अलग,
जो हमें कभी समझ में नहीं आता है।
~~ आशीष लाहोटी ( १९ जून २०११ फादर्स-डे ) ~~