छोटा था तो अच्छा था !

कभी मैं भी छोटा बच्चा था, वो पल कितना सच्चा था,
उमर का थोडा कच्चा था, पर छोटा था तो अच्छा था।

जब दो आंसु की कीमत पे, जो चाहे वो मिल जाता था,
तब एक छोटे बहाने से मैं स्कूल से छुट्टी पाता था।

जब खिलोनों गुड्डे गुड़ियों के चारों और मेरा संसार था,
तब मिटटी के घरौंदों से मैं अपनी दुनिया सजाता था।

जब मम्मी की छोटी डांट पे भी मुझे जोर से रोना आता था,
तब उनकी गोद में सर रखके मैं सारी खुशियाँ पाता था।

जब पापा के काम से आते ही पढने का नाटक करता था,
तब उनका सर पे हाथ भी आशीर्वाद बन जाता था।

जब भाई के साथ में मिल मैं खूब शरारत करता था,
तब मेरी सारी गलती भी वो अपने सर ले लेता था।

जब दीदी हर बात पे मेरी खूब खिंचाई करती थी,
तब अपने हिस्से की चीज़े भी मुझको दे देती थी।

जब दोस्तों की टोली में मैं खूब धमाल मचाता था,
तब दोस्ती का वादा भी सच्चे दिल से निभाता था।

जब छोटा सा संसार था, न कोई जीवन जंजाल था,
तब मैं बिलकुल नादान था, पर छोटा था तो अच्छा था।

उन खट्टी मीठी यादों में, मैं आज भी रोता हँसता हूँ,
वो बचपन फिर न आयेगा, पर आज भी मैं एक बच्चा हूँ।


~~ आशीष लाहोटी ( 8-अप्रैल-११ ) ~~