याद आता है - VIT !!!

जन्दगी के इस मोड़ पे, जब हम उस वक़्त से बहुत दूर निकल गए,
उन पलों को समेटना चाहता हूँ, जो मैंने कॉलेज (VIT) में बिताये।

वो हॉस्टल में मम्मी पापा का यूँ छोड़ जाना,
और फिर ‘F ब्लॉक’ के bunk bed पे सोना,
तब अनजान लोगों का अपना बन जाना याद आता है।

वो लाइट जाने पे dustbin का नीचे फेंकना,
और फिर तरह तरह की आवाजें निकलना,
तब ‘राजेश गोविन्दन’ का डंडे से पीटना याद आता है।

वो बस ५ मिनट और सोच के Alarm का बंद कर देना,
और फिर सुबह की पहली क्लास miss कर देना,
तब दोस्तों का Class में मेरी Proxy लगाना याद आता है।

वो जीन्स बस बिना धोये पहनते ही जाना,
और फिर डिओ लगा के बिना नहाये क्लास भाग जाना,
तब महीने में एक बार धोबी घाट लगाना याद आता है।

वो प्रोफेसर के लेक्चर सुनते ही नींद आ जाना,
और फिर लास्ट बेंच पे बैठ के मजाक करना,
तब bunk मारके फ़ूड कोर्ट में veg puff खाना याद आता है।

वो रात रात भर जागकर CS, Dota खेलना,
और फिर FRIENDS, HIMYM, 24 की series ख़तम कर देना
तब सुबह का breakfast miss कर देना याद आता है।

वो दिवाली पे हॉस्टल में आधी रात को बम फोड़ना,
और फिर होली पे सोते हुए दोस्तों पे रंग डालना,
तब ‘Reviera’ पे चार दिन खूब मस्ती करना याद आता है।

वो exam में last moment पे course पता करना,
और फिर साथ में मिलके night out करना,
तब रात में चाय की घंटी बजने का इंतज़ार करना याद आता है।

वो mess में लम्बी लाइन में लगना,
और फिर बकवास खाना देख के भाग जाना,
तब ‘Enzo’ की maggi और सुनील अन्ना का ‘PD’ याद आता है।

वो दोस्त के b’day पर उसकी खूब धुलाई करना,
और फिर गले लगा के उसे b’day wish करना,
तब उसकी b’day treat पे लम्बा चौड़ा बिल आना याद आता है।

वो interview clear न होने पे tense हो जाना,
और फिर दोस्तों का मेरी काबिलियत पे भरोसा दिलाना,
तब job मिलने पर उनका मुझसे ज्यादा खुश होना याद आता है।

वो वक़्त नहीं ठहर पाया हमारे लिए,
और फिर हम आ गए जिंदगी के एक नए मुकाम पे,
तब आज फिर उसकी कॉलेज लाइफ में वापिस जाने को दिल चाहता है।


~~ आशीष लाहोटी ( २३ अप्रैल २०११ ) ~~