जिंदगी क्या है ?

जिंदगी क्या है, रिश्तों का जंजाल।

जितना दूर भागना चाहता हूँ, उतना ही अपने पास पाता हूँ,

जितना समझने की कोशिश करता हूँ, उतना ही उलझ जाता हूँ।

जिंदगी क्या है, वक़्त का साया।

जब चाहता हूँ दूर भाग जाना, वो हर साँस में मेरे साथ रहती है,

जब चाहता हूँ कुछ और जीना, वो हर रोज उम्र कम कर देती है।

जिंदगी क्या है, रंगमंच का तमाशा।

जिसमे हसना है तो रोना भी, रूठना है तो मनाना भी,

जिसमे प्यार दोस्ती का वादा है तो वहीँ दुश्मनी निभाना भी।

जिंदगी क्या है, मद का प्याला।

जितना ज्यादा भरना चाहता हूँ, उतना छलकता जाता है,

कितना भी पी लूँ, एक जाम तो हमेशा कम पड़ जाता है।

जिंदगी क्या है, समुंद्र की लहर।

वो जितना शोर और उफान लेकर आती है, उतने ही धीमे लोट जाती है,

या फिर रेत,

जितना मुठी में पकड़ने की कोशिश करता हूँ, उतनी छूटती चली जाती है।

जिंदगी क्या है, ये हमेशा से एक राज है।

पता नहीं कभी कोई इसके असली मकसद को समझ पायेगा,

इसे समझने के लिए तो अगला जनम भी काम पड़ जायेगा।


~~ आशीष लाहोटी ( ०१ मई २०११ ) ~~