माँ, क्या लिखुँ तुम्हारे बारे में?
माँ, क्या लिखुँ तुम्हारे बारे में?
मेरे शब्दकोष का पहला शब्द हो तुम,
मेरे रेंगने से पैरों पे खड़े होने का सफर हो तुम।
रात भर जाग जाग कर सुलाने वाली तुम,
थोड़ी भी चोट लग जाये तो सहलाने वाली तुम।
माँ, क्या लिखुँ तुम्हारे बारे में?
कितना भी खा पी के सेहत बना लूँ,
बेटा कमजोर हो गया है, बोल के थोड़ा और खिलाती है।
नौकरी की मज़बूरी में जो दूर हो गया बहोत,
तेरे हाथ के खाने की याद बहोत आती है।
माँ, क्या लिखुँ तुम्हारे बारे में?
तू सब जानती है, मुझे खुद से ज्यादा पहचानती है,
लाख जतन कर लूँ कुछ छिपाने की, तू सब भांप जाती है।
उलझनें कितनी भी हो जिंदगी में,
तेरी गोद में सर रखते ही सब छू मंतर हो जाती है।
~~ आशीष लाहोटी ( १५ सितम्बर २०२० माँ का जन्मदिन ) ~~